Ad

Odisha Millets Mission

बाजरा एक जादुई फसल है, जो इम्युनिटी पावर को बढ़ाती है

बाजरा एक जादुई फसल है, जो इम्युनिटी पावर को बढ़ाती है

बाजरा प्रोटीन, फाइबर, प्रमुख विटामिन और खनिजों का एक अच्छा स्रोत है। बाजरा हृदय स्वास्थ्य की रक्षा करने में मदद करता है, मधुमेह की शुरुआत को रोकता है

महाराष्ट्र के कुछ आंतरिक भागों में, कम वर्षा फसलों की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।

एक केस स्टडी के अनुसार, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा मंडल के 27 वर्षीय किसान अंकित शर्मा को कम वर्षा पैटर्न के कारण प्रति वर्ष 5 लाख का नुकसान हुआ। चूँकि भारत में वर्षा का पैटर्न कई कारकों पर निर्भर करता है। जैसे; एल नीनो । ला लीना, उच्च दबाव (hp) और कम दबाव (lp), हिंद महासागर द्विध्रुवीय आंदोलन। वर्षा की समस्या को हल करने के लिए भारत सरकार और कई राज्य सरकारों ने प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना जैसी सिंचाई योजनाओं की शुरुआत की, जिससे इस जटिल समस्या का कुछ हद तक समाधान हुआ है, लेकिन यह लंबे समय तक संभव नहीं है।

समाधान बाजरे की खेती है, जो भारत की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुकूल है।

2023 में अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2018 में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा अनुमोदित किया गया था और संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को बाजरा का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया है। ओडिशा सरकार ने ओडिशा मिलेट मिशन (OMM) लॉन्च किया था। जिसका उद्देश्य किसानों को उन फसलों को उगाने के लिए प्रोत्साहित करके अपने खेतों और खाद्य प्लेटों में बाजरा वापस लाना है। जो पारंपरिक रूप से आदिवासी क्षेत्रों में आहार और फसल प्रणाली का एक बड़ा हिस्सा हैं।

यदि हम बाजरे के महत्व पर विचार करें तो यह एक लंबी सूची है।

पोषण से भरपूर:

बाजरा प्रोटीन, फाइबर, प्रमुख विटामिन और खनिजों का एक अच्छा स्रोत है। बाजरा हृदय स्वास्थ्य की रक्षा करने में मदद करता है, मधुमेह की शुरुआत को रोकता है, लोगों को स्वस्थ वजन हासिल करने और बनाए रखने में मदद करता है, और आंत में सूजन का प्रबंधन करता है।

ये भी देखें: IYoM: मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा को अब गरीब का भोजन नहीं, सुपर फूड कहिये

कम पानी की आवश्यकता होती है:

बाजरा अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय में एक महत्वपूर्ण प्रधान है। जरूरतमंद व्यक्तियों के लिए भोजन और पोषण सुरक्षा की गारंटी देता है, जो कम वर्षा और मिट्टी की उर्वरता के कारण अन्य खाद्य फसलें नहीं उगा सकते हैं।

मध्यम उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है:

वे कम से मध्यम उपजाऊ मिट्टी और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में बढ़ सकते हैं। ज्वार, बाजरा और रागी भारत में विकसित प्रमुख बाजरा हैं।

लाभदायक फसल:

बाजरा किसानों के लिए खेती के प्राथमिक लक्ष्यों जैसे लाभ, बहुमुखी प्रतिभा और प्रबंधनीयता को प्राप्त करने के लिए अच्छा विकल्प है।

सूखा प्रतिरोधी और टिकाऊ:

बाजरा भविष्य का 'अद्भुत अनाज' है। क्योंकि वे सूखा प्रतिरोधी है, जिन्हें कुछ बाहरी आदानों की आवश्यकता होती है। कठोर परिस्थितियों के खिलाफ अपने उच्च प्रतिरोध के कारण, मोटे अनाज पर्यावरण के लिए, इसे उगाने वाले किसानों के लिए टिकाऊ होते हैं। सभी के लिए सस्ते और उच्च पोषक विकल्प प्रदान करते हैं।

लंबी शेल्फ लाइफ:

भारत में उत्पादित लगभग 40 प्रतिशत भोजन हर साल बर्बाद हो जाता है। बाजरा आसानी से नष्ट नहीं होता है, और कुछ बाजरा 10-12 साल बढ़ने के बाद भी खाने के लिए अच्छे होते हैं, इस प्रकार खाद्य सुरक्षा प्रदान करते हैं, और भोजन की बर्बादी को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चूँकि सरकार बाजरा उगाने के लिए प्रचार कर रही है, इसलिए सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएँ शुरू की गई हैं। उचित प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की पहल के साथ समर्पित कार्यक्रम जो किसानों को घाटे वाली फसलों से दूर बाजरा के माध्यम से विविधीकरण की ओर ले जाने का आग्रह करते हैं, किसानों को दूर करने का एक समयोचित तरीका हो सकता है।

ओडिशा में आदिवासी परिवारों की आजीविका का साधन बनी बाजरे की खेती

ओडिशा में आदिवासी परिवारों की आजीविका का साधन बनी बाजरे की खेती

भुवनेश्वर। ओडिशा में बाजरे की खेती (Bajre ki Kheti) धीरे-धीरे आदिवासी परिवारों की आजीविका का साधन बन रही है। मिलेट मिशन (Odisha Millets Mission) के तहत बाजरे की खेती को फिर से बड़े पैमाने पर पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रहीं हैं। इससे राज्य के आदिवासी परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार की संभावना दिखाई दे रहीं हैं।
ये भी पढ़े: बाजरा की खड़ी फसल से बाली चोंट लेना है फायदेमंद
सरकार राज्य के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में बाजरे की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है। इसके जरिए ही इन परिवारों को आर्थिक मजबूती देने की कोशिश है।

कम बारिश में अच्छी उपज देती है बाजरे की फसल

- बाजरे की फसल कम बारिश में भी अच्छी उपज देती है। इसीलिए उम्मीद जताई जा रही है कि यहां के आदिवासी परिवारों की बाजरे की खेती सबसे अधिक लाभकारी करेगी। यही कारण है कि ओडिशा के तीसरे बड़े आबादी वाले मयूरभंज जिले में महिला किसानों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
ये भी पढ़े: बुवाई के बाद बाजरा की खेती की करें ऐसे देखभाल

राज्य के 19 जिलों में बाजरे की खेती को किया जा रहा है पुनर्जीवित

- ओडिशा राज्य के 19 जिलों में बाजरा की खेती को पुनर्जीवित करने की योजना बनाई गई है। इसमें 52000 हेक्टेयर से अधिक का रकबा शामिल किया गया है। साथ ही 1.2 लाख किसानों को बाजरे की खेती से जोड़ा जा रहा है।
ये भी पढ़े: ओडिशा के एक रेलकर्मी बने किसान, केरल में ढाई एकड़ में करते हैं जैविक खेती

महिला किसानों की भागीदारी है प्रसंशनीय

- ओडिशा में बाजरे की खेती को लेकर आदिवासियों में जबरदस्त उत्साह है। इनमें खासतौर पर महिला किसानों की भागीदारी प्रसंशनीय है। कई जगह अकेले महिलाएं ही पूरी तरह बाजरे की खेती कर रहीं हैं। वहीं कई स्थानों पर महिलाएं अपने पुरुष समकक्षों संग धान की खेती में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहीं हैं। महिलाएं अपनी उपज को अच्छे भाव में बाजार में बेच रहीं हैं।

मिशन मिलेट्स के तहत खेती को मिल रहा है बढ़ावा

- राज्य में मिशन मिलेट्स के तहत बाजरे की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें सरकार भी किसानों की मदद कर रही है। किसान बंजर जमीन को उपजाऊ बनाकर बाजरे की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इस कार्यक्रम का शुभारंभ साल 2017 में हुआ था। इन दिनों रागी, फोक्सटेल, बरनार्ड, ज्वार, कोदो व मोती जैसी विभिन्न किस्मों की खेती की जा रही है। यही बाजरे की खेती आदिवासी परिवारों की आजीविका का साधन बन रहा है। ----- लोकेन्द्र नरवार
ओडिशा में बाजरे की खेती, नीति आयोग ने की जम कर तारीफ़

ओडिशा में बाजरे की खेती, नीति आयोग ने की जम कर तारीफ़

2023 को अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष (इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM)) घोषित किया गया है. जाहिर है, यह घोषणा बाजरे के महत्व को समझते हुए ही किया गया होगा. वैसे भी बाजरा (Pearl Millet) मोटे अनाज के तौर पर एक स्वस्थ इंसान के लिए काफी लाभदायक माना जाता है. इसकी पौष्टिकता को देखते हुए डॉक्टर तक इसके इस्तेमाल की सलाह देते हैं. बाजरे के महत्व को देखते हुए ही नीति आयोग तक ने कहा है कि ओडिशा की तरह अन्य राज्यों को भी बाजार उत्पादन के लिए कदम उठाना चाहिए, जिससे आगे चल कर बहुआयामी लाभ होंगे. दरअसल, नीति आयोग ने ओडिशा द्वारा बाजरा उत्पादन के क्षेत्र में किए जा रहे कार्य को देखते हुए उक्त बातें कही है.
इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
बाजरा ग्रास फैमिली के छोटे अनाज हैं, जो कठोर, स्वयं-परागण वाली फसल है. ओडिशा में सरकार विभिन्न वजहों से बाजरा की खेती को बढ़ावा दे रही है. इसका एक कारण यह है कि बाजरा प्राकृतिक रूप से पारिस्थितिकी तंत्र में एकीकृत हो जाता है. यह विपरीत मौसमी परिस्थितियों में भी अच्छी तरह से उपजता है और अन्य प्रमुख फसल जैसे गेहूं, धान की तुलना में कम इनपुट वाली खेती प्रणाली के लिए फिट है. यह लाल और काली मिट्टी में भी उपजता है, जो कि ओडिशा के पूर्वी घाट में पाई जाती है.

ओडिशा बाजरा मिशन

इसकी खेती आदिवासी समुदायों द्वारा की जाती रही है और इसका उपयोग भी मुख्यतः आदिवासियों के द्वारा ही किया जाता रहा है. कालान्तर में यह उपयोग धीरे धीरे विलुप्त होते जा रहा था, जिसे पुनर्जीवित करने के लिए मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की निगरानी में 2017 में 'ओडिशा बाजरा मिशन' (Odisha Millets Mission) लॉन्च किया गया था. ख़बरों के मुताबिक, कार्यक्रम का प्रबंधन ओडिशा मिलेट मिशन (ओएमएम) के माध्यम से जिलों में परियोजना प्रबंधन इकाइयों द्वारा किया जाता है और इसकी निगरानी राज्य कार्यक्रम प्रबंधन इकाई द्वारा की जाती है. ओएमएम एक अनूठी परियोजना है जो पोषक अनाज के बेहतर उत्पादन, स्थानीय खपत, एमएसपी के तहत खरीद और पीडीएस के माध्यम से वितरण पर केंद्रित है.

ये भी पढ़ें: IYoM: मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा को अब गरीब का भोजन नहीं, सुपर फूड कहिये

स्वास्थ्य के साथ मिट्टी में सुधार

विभिन्न समुदायिक संगठन के माध्यम से इस मिशन को 76 ब्लॉकों में लागू किया जा रहा है. राज्य सरकार ने खरीफ सीजन में 3150 रुपये प्रति क्विंटल की दर से लगभग 95,000 क्विंटल बाजरे की खरीद की है. राज्य पोषण कार्यक्रम के तहत सात जिलों में 16 लाख से अधिक हितग्राहियों को खरीफ सीजन उपार्जन के बदले प्रति राशन कार्ड धारक 1 किलो बाजरा दिया गया. महिला स्वयं सहायता समूह, क्षेत्रीय शिक्षा केंद्र, वन एवं पर्यटन विकास एजेंसी और ग्राम स्वराज जैसे संगठनों के सहयोग से यह मिशन सुचारू ढंग से चलाया जा रहा है. स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर गुणवत्ता वाले अनाज को चुना और उपलब्ध कराया जाता है. किसानों को जैविक रूप से फसल उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. किसानों को जैविक खाद और गोबर उपयोग करने की सलाह दी जाती है. किसान इस पर अमल भी कर रहे है. नतीजतन, इससे मिट्टी की गुणवत्ता में काफी सुधार भी देखने को मिल रहा है.

आईसीडीएस (Integrated Child Development Services (समन्वित बाल विकास योजना)) में बाजरा वितरण

एक पायलट कार्यक्रम के रूप 15 अगस्त, 2020 को सुंदरगढ़ जिले में प्री-स्कूल बच्चों के पोषण के लिए बाजरा का लड्डू देने वाले कार्यक्रम को लॉन्च किया गया था. इस कार्यक्रम के तहत एक साल के भीतर, 17 ब्लॉक के सभी 21 आईसीडीएस को कवर करने की योजना बनाई गयी. इस पहल से 3-6 वर्ष के आयु वर्ग के 86,000 से अधिक बच्चों को लाभ मिल रहा है. जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) के समर्थन से, प्रशासन ने ओडिशा बाजरा मिशन कार्यक्रम के तहत बाजरा की खेती के तहत 3,000 हेक्टेयर (हेक्टेयर) कृषि भूमि को लाने के लिए एक पंचवर्षीय योजना तैयार की है. पंचवर्षीय योजना (वित्त वर्ष 2022-23) के अंत में बाजरा कवरेज के तहत क्षेत्र 6000 हेक्टेयर को पार करने के लिए तैयार है. बाजरा की खेती ओडिशा जैसे राज्य में पोषण सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक सुरक्षा प्रदान कर रहा है. नीति आयोग ने ओडिशा के इस मिशन की सराहना की है. नीति आयोग के अनुसार, रागी और अन्य बाजरा के किस्मों के उत्पादन को आईसीडीएस की इस पहल से बढ़ावा दिया जाएगा. इस पहल को तीन आयामी लाभ देने वाला बताते हुए नीति आयोग ने कहा है कि इससे किसानों और महिला समूहों की आय बढ़ाने में मदद मिलेगी.